Page 68 - Confluence
P. 68

Jaspal Kaur Public School  | 2020-21                                             68






                                                  े
                                                            े
               बौद्धधक ववमशद- तक क आईन में
                                             द
                             रगभि की नीतत
                              ं
                                    े
                            ै
   चने का य कौन सा ढग ह ?मापिि गुण नही अवपतु रग ह !उर म भेिभाव क्यों व्यालत ह ?क्या मानव
             े
                        ं
                                                                                           ै
                                    ं
                                                                    ें
                                                        ं
                                                            ै
                                                               े
                           ै
                                                                             े
                                          े
                                                      ें
                                                                      े
   होना ही, नहीं पयादलत  ह ?आि सुबह क अख़बार म िब अमररका क अववत नागररक िॉिद फ्लॉयि की
                                                                   े
                                                                                    ें
   मौत की खबर पढ़ी तो लगा कक २३० साल पहल आज़ाि हआ अमररका क्या सच म ही आज़ाि हआ था..या
                                                  े
                                                                                                 ु
                                                            ु
                                                       े
       द
                                                                                                     ै
   ससफ ववेत वणद को ही आज़ािी समली थी ?या कफर य अमेररककयों की  आज़ािी का एक मुखौिा-भर ह।
                        ै
                                                        ं
                                                                             ें
                              ं
   सोचने की बात यह ह कक रगभेि आि कहाँ नहीं ह ?रगभेि को रोज़ घर म, अख़बारों म, िी-वी पर सुनते
                                                     ै
                                                                                         ें
                                                                        ं
                                                                                      ें
                                                              े
                                         ें
                े
   और त्रबकते िखती हँ। आि  क िौर म फशन िगत हो, चाह कफल्म इिस्ट्री, सभी म 'िो दिखता ह, वही
                                           ै
                                                                                                    ै
                                 े
                       ू
            ै
                                                                                           ं
                                                                                        े
                                                              ै
   त्रबकता ह' और यही फामूदला हमारी िीवनशैली पर भी लागू ह। अब हमारी पहचान हमार रग, ऱूप और
                                                                       ें
                        ै
      े
                                                                                                      ं
   स्ििस स होने लगी ह। तेिी स लुलत होती हमारी भारतीय सस्क ृ तत म पहल कभी 'ऱूपस्याभरणम ्  गुण' की
                                  े
                                                               ं
            े
                                                                             े
                                                                              ै
                                         ै
                                                                                          ें
                                                       े
   बात की िाती थी, जिसका अथद होता ह कक व्यजक्त क ऱूप का तभी महत्व ह, िब उसम गुण हो, वरना
                                                                            ें
                                                                ैं
                            े
                        ै
                                                                                           े
   उसकी सुिरता व्यथद ह। लककन आि इसक मायने बिल गए ह।   भारत म आि भी रगभि का अपना
                                            े
            ं
                                                                                        ं
                                                                                                         े
                                                                    ै
                                                                                     ें
   अलग सस्करण ह िो सलंगभि स िुड़कर और भयानक हो िाता ह। िब अखबारों म वववाह या नौकरी क
                               े
                                   े
                    ै
           ं
                                                              ै
                                                                     ं
                                 ें
   ववज्ञापन दिए िाते ह तो उसम स्पष्ि तौर पर सलखा होता ह कक 'सुिर व आकषदक लड़की को प्राथसमकता',
                       ैं
                                   ै
                          ें
                                        े
   योग्यता की बात बाि म आती ह। ऐस ववज्ञापन पढकर लगता ह कक कछ ु ए और खरगोश की इस िौड़ म
                                                                  ै
                                                                                                        ें
                                                                               े
                                                                                     ै
   खरगोश ही िीत गया ह। अक्सर सुनने म आता ह कक िस हमार यहा िाततभि ह वसे ही पजवचम म
                                                                                   ै
                                           ें
                                                    ै
                                                           ै
                                                                       ँ
                                                            े
                                                                  े
                          ै
                                                                                                     ें
                                                                         ें
           ै
    ं
   रगभेि ह।  कहने वालों का आशय शायि यह होता हो कक हर समाि म भेिभाव का कोई न कोई अतनवायद
                                            ै
                    ै
                                                                                        ं
                                                                            ै
                                                                                   े
                                                            ं
                           े
   ऱूप तो होता ही ह। हमार यहाँ िाततभेि ह तो क्या! यहाँ रगभेि तो नहीं ह ? वविशी रगभेि से भारतीय
                                                                                          े
                                                                                                        ें
    ं
                                                ं
                    े
                                              े
   रगभेि इस मामल म अलग ह कक वहां काल रग का कोप स्त्री-पुरुष िोनों पर रहता ह। लककन भारत म
                       ें
                                ै
                                                                                      ै
                                                                                                      ै
                 े
       े
                                                          े
                                                       ें
   काल या सांवलपन को खासतौर से जस्त्रयों क संिभद म िखा, सुना, कहा और पररभावषत ककया िाता ह।
                                              े
                                 े
                                         ं
                                                                                   ं
                         े
                                                     ं
                                                             े
   इसस क ु छ समय पहल गोवा क मुख्यमत्री लक्षमीकात पारसकर ने हड़ताल कर रही नसों को कहा था कक वे
        े
                               ें
                                                            द
                                             े
         ें
                                                      ं
   धूप म बठकर हड़ताल न कर क्योंकक इसस उनका रग ‘िाक‘ होगा जिसकी विह से उनकी वैवादहक
            ै
                               ें
                   ें
   संभावनाएँ त्रबगड़गी। भारत म रगभेिी दिपखणयाँ अक्सर ककसी बड़े ववरोध प्रिशदन का कारण नहीं बनतीं।
                                 ं
                                                              े
                                                                                                     ै
                                                                                    ं
                                                                            ं
                                                                    द
              े
   एक तो इस ववरोध करने लायक मुद्िा नही माना िाता िूसर, ससफ गोरा रग ही सुिरता का पयादय ह, यह
                                                               े
                                                                                                े
                                                                                                         ं
                                 ें
                      े
                                                   े
                                                         े
           े
                                                                                           ं
                                                                             ै
                                            ै
   सोच पूर स्त्री-वगद क दिमाग म िमी हई ह। इसक पीछ सबस बड़ा कारण ह –पररवार, क्यूकक य सब वही
                                         ु
   स शुऱू होता ह।  इससलए सावला या काला रग भारतीय लड़ककयों क सलए जितना बड़ा असभशाप ह उतना
                                                                     े
     े
                                                                                                   ै
                                               ं
                               ं
                 ै
                                                                      ं
                                ं
                             े
           े
                                                                   े
   लड़कों क सलए नहीं। सांवल रग की लड़की क िन्म पर ककसी गोर रग की बच्ची से ज्यािा िुख और
                                              े
                           ै
   अफसोस िताया िाता ह। सांवली लड़ककयों पर अक्सर ही ज्यािा मेहनती होने, ज्यािा िहि, पढ़ाई म
                                                                                                      ें
                                                                                          े
                                                             ै
                                                                                                    े
                                े
   अव्वल और ज्यािा सुघड़ता स काम करने का िबाव रहता ह। गोरपन क प्रतत आसजक्त काल रग क प्रतत
                                                                   े
                                                                         े
                                                                                               ं
                                                                                             े
                                                                        ं
                                      े
   हमारी मानससकता को तछपने नहीं ि रही।  यहाँ सवाल ततरस्कार का रग ह। नस्ल, िातत, संप्रिाय या कफर
                                                                            ै
   सलंग क आधार पर ककया गया कोई भी ततरस्कार ‘इतना-सा‘ नहीं होता. वह भी तब िबकक सम्मान और
          े
                                                                             द
                                                                 ै
   गररमापूणद िीवन िीना ककसी भी इसान का नैसधगदक अधधकार ह। अतत ताककक और आधुतनक 21वीं सिी
                                     ं
    ं
                                                          ें
        े
                                                               े
                                               े
                                                                                      ै
   रगभि का कड़ा ववरोध करने क बाविूि इसक िुवचि म फस रहने को असभशावपत ह। इतना ही नहीं,
                                                            ं
                                 े
   गोर- काल का य असभशाप तो खुि महात्मा गाधी िी ने भी खुि साउथ अफ्रीका म झेला और कई बार
      े
                   े
                                                                                   ें
             े
                                                ँ
                                                                                       ें
                                         े
   भेिभाव का सामना ककया |1893 से लकर 1914 तक महात्मा गाँधी िक्षक्षण अफ्रीका म नागररक अधधकारों
                            े
                                       ें
                                                            े
    े
   क सलए आंिोलन करते रह। 1915 म गाँधी िी भारत लौि और कफर आिािी का िो आंिोलन उन्होंने
                      ें
                                                                               े
                                           ं
   चलाया, उसी ने हम अंग्रिों और उनकी रगभेि की नीतत से आज़ाि कराया, लककन अब वो गाँधी कहाँ िो
                           े
                   े
   इसका ववरोध कर और आज़ािी दिलवाए |
   ट्ववंकल-10d
   63   64   65   66   67   68   69   70   71   72   73