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Jaspal Kaur Public School  | 2020-21                                             57




                    सफ़रनामा




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                          क़
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                “हज़ार बर् गिर लाख आगिया उठ       ें
             व फल खखल क रहि जो खखलन वाल ह।“
               े
                 ू
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                       (सागहर लगियानवी)
        मानव-सभ्यता का सफ़र चुनौततयों को की गाड़ी हमारी जििीववषा क ईंधन से लगातार
                                                                                    े
                                                                                                        ै
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        आग बढ़ती रही ह। नदियों न स्वीकार कर िूझते हए तनरतर आग बढ़ने का सफ़र ह।
                            ै
                                                                         ं
                                                                  ु
        इस यात्रा में लाखों बाधाए आयी हैं, कभी क ु िरत न तो कभी मनुष्य न खुि को
                                     ँ
                                                                  े
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        बाधधत ककया ह, ककन्तु सभ्यता बहना नहीं छोड़ा ह और फ ू ल खखलन की आित कभी
                         ै
                                                                 ै
        भूल नहीं। ऐसी ही एक बड़ी चुनौती क बीचोंबीच आि हम खड़े हैं। िून का महीना
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                                                              े
        शुऱू हो गया, स्क ू लों में छ ु ट्दियाँ भी हईं। पर य छ ु ट्दियाँ हर बार की तरह नहीं हैं।
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        वैजववक महामारी क इस ऐततहाससक संकि क बीच आि चारों ओर िि और भय
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                                                                                        द
        पसरा ह। पर िोस्तों, आग की पहली धचंगारी से लेकर अन्तररक्ष की उड़ान तक
                 ै
        ‘ठहराव और परािय’ का स्थायी ववलोम ह हमारी सभ्यता-यात्रा : “बरगद की छ िंव
                                                        ै
                                                                                                  ै
        तले / फ ू ल नह िं उगते / वो उगते हैं / जब धरती / सूरज क त प में पपघलती ह /
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                              िं
        .....वो उगते हैं / बूदों की नोक / जब उन्हें चुभती ह..../ वो बढ़ते हैं / जब तूफ नों में
                                                                   ै
        भी / खड़े होन क  हनर सीख ज ते हैं।“
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                               ु
        हमन भी इस सि समय में पररश्रम की आग िलानी सीख ली। िब पूरा िश बंि था,
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        तब हमने अपने सलए नए िरवािे खोले। आि हम ऑनलाइन क्लासेज़, ऑनलाइन
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        एजक्िवविी, काउसससलंग स लकर ऑनलाइन परीक्षा तक की यात्रा पूरी कर चुक। मैं
                                                                                               े
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                                                                  ै
        िानती हँ कक अभी और बहत क ु छ सीखना बाकी ह, करना बाकी ह, पर आि याि
                                                                                    ै
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        आती ह, माचद की वह गुनगुनी िोपहर, िब हम सब स्िाफ ऱूम में बैठ फ़ाइनल
        एक्िाम का ररज़ल्ि तैयार कर रह थे। गरम चाय क साथ कोरोना क ककस्सों की गप-
                                                                  े
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        शप भी गरम थी। अचानक प्रशासन द्वारा पूर स्िाफ को एकत्र होन को कहा गया।
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                                                                                    े
                                                                                                      े
        वाइस चेयरपसदन (रसना मैम) न हम सबोधधत करना शुऱू ककया। उनकी बातचीत क
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        क ें द्र में िकपीएस पररवार की धचंताए थीं। उन्होंन कहा कक इन पररजस्थततयों में
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                                                               े
        तनयसमत स्क ू ल नहीं चल सकता। हम सब को समलकर कोई न कोई रास्ता तनकालना
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        होगा ताकक सीखने-ससखाने की प्रकिया बाधधत न हो। उनक सम्बोधन में धचंता का
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        स्वर स्थायी ऱूप स मौिूि था।
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        िोस्तों, उस दिन मैंन िखी थी – तूफान में खड़ी वो माँ िो अपन आचल तले बच्चों
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        को छ ु पा लना चाहती थी, िो तेि हवाओ क बीच सुना रही थी िीविता की कहातनयाँ,
                                                                                      े
        िो बच्चों को ससकिर बनान का हनर िानती थी। हम सब गल समल और इस
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        उम्मीि क साथ वविा हए कक यह आगन कफर स गुलिार होगा, कफर स स्क ू ल में हँसी
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                                   ु
        गूँिेगी और कफर शरारतों का कारवाँ आगे बढ़ेगा।
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